इतिहास
प्रस्तावना
इसके अंतर्गत केन्द्र सरकार ने भारतीय खाद्यनिगम के माध्यम से खाद्यान्नों की खरीद, भंडारण, ढुलाई और बल्क आवंटन करने की जिम्मेदारी ले रखी है।
राज्य के अंदर आवंटन, गरीबी रेखा से नीचे के परिवार की पहचान करने, राशन कार्ड जारी करने और उचित मूल्य दुकानों के कार्यकरण का पर्यवेक्षण करने सहित प्रचलनात्मक जिम्मेदारी खाद्य विभाग की है।
क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है। विषम भौगोलिक परिस्थितियों
के इस प्रदेश में अधिकांश भाग रेगिस्तानी और कम वर्षा वाला है। वर्ष 2011 की जनगणना
के अनुसार राज्य की जनसंख्या 686.21 लाख है। इस जनसंख्या में 515.40 लाख ग्रामीण और
170.81 लाख शहरी क्षेत्र की जनसंख्या सम्मिलित है। राज्य के सभी श्रेणी के परिवारों
यथा- बीपीएल, एपीएल, अन्त्योदय आदि के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली का क्रियान्वयन
राज्य में आरम्भ से ही किया जा रहा है। देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का उद्गम 1960
के दशक में हुई खाद्यान्नों की अत्यधिक कमी से कमी वाले शहरी क्षेत्रों में खाद्यान्नों
का वितरण करने पर ध्यान केन्द्रित करके हुआ था। इसके बाद हरित क्रांति के अंतर्गत चूंकि
राष्ट्रीय कृषि उत्पादन में वृद्धी हुई थी, इसलिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली का विस्तार
1970 और 1980 के दशको मे आदिवासी ब्लोको और अत्यधिक गरीबी वाले क्षेत्रों के लिए किया
गया था। वर्ष 1992 तक सार्वजनिक वितरण प्रणाली विशेष लक्ष्यों के बगैर सभी उपभोक्ताओं
के लिए एक सामान्य पात्रता योजना थी। सम्पुष्ट सार्वजनिक वितरण प्रणाली जून 1992 में
सम्पूर्ण देश में प्रारंभ की गयी थी। लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली जून 1997 में
प्रारंभ की गई थी।
विभाग की स्थापना
इस विभाग की स्थापना सार्वजनिक वितरण प्रणाली का प्रबंध करने और उचित मूल्यों पर खाद्यान्नों
का वितरण करने के लिए तैयार की गयी थी। पिछले कुछ वर्षों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली
देश में खाद्य अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के लिए सरकार की नीति का महत्वपूर्ण अंग बन
गई है। इसके अंतर्गत केन्द्र सरकार ने भारतीय खाद्यनिगम के माध्यम से खाद्यान्नों की
खरीद, भंडारण, ढुलाई और बल्क आवंटन करने की जिम्मेदारी ले रखी है। राज्य के अंदर आवंटन,
गरीबी रेखा से नीचे के परिवार की पहचान करने, राशन कार्ड जारी करने और उचित मूल्य दुकानों
के कार्यकरण का पर्यवेक्षण करने सहित प्रचलनात्मक जिम्मेदारी खाद्य विभाग की है। राज्य
में वर्ष 1964 तक खाद्य एवं सहायता विभाग एक संयुक्त विभाग के रूप में कार्यरत रहे।
वर्ष 1964 से सहायता विभाग से अलग होकर खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग पृथक से अस्तित्व
में आया। वर्ष 1987 से विभाग द्वारा उपभोक्ता संरक्षण से संबंधित कार्य भी संपादित
किए जा रहे हैं। दिनांक 21 जून 2001 को विभाग का नाम ‘खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता
मामले’ विभाग किया गया। विभाग द्वारा राज्य में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का प्रभावी
संचालन करने के साथ ही आवश्यक वस्तुओं की बाजार में उपलब्धता भी सुनिश्चित की जाती
है। आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 एवं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के क्रियान्वयन
संबंधित कार्य भी विभाग द्वारा किये जाते है।